Tuesday, December 29, 2009

ज़िन्दगी खफा खफा सी लगती है !



 
ज़िन्दगी खफा खफा सी लगती है ,
मौजो की रवानी आज बेवफा सी लगती है,
बंद थे जो सच किसी पन्ने किसी किताब में,
आज वोह कहानी अनजानी सी लगती है !!

ज़िन्दगी क्या क्या रंग दिखाती है, कभी हसती तो कभी रुलाती है... ऐसे ही कुछ काली स्याही से लिखे अरमान जो अरमान ही रह गए और कुछ ऐसे भी लोग थे जो साथ चलते थे पर आज मुस्किल मोड़ पे अनजान हो गए...

साल मनो सुरु ही हुआ और अब ख़तम होने को है... पर ये अंत उन् गुज़ारे सालो जैसा नहीं है ,.. कुछ कडवाहट है कुछ बातें है जो दिल से बहार आने को उतावला हो रहा है पर क्या करे कमबख्त ये दिल न समाज है ..ना जाने क्यूँ सच जानते हुए हुए बी अनजान बना हुआ है... क्यूँ क्यूँ नहीं कह प् रहा है अपने दिल का हाल ? किस वक़्त के इंतज़ार में है...? जाने क्यूँ ये आज चुप है ... शायद नहीं चाहता की किसी और को तकलीफ दे.... नहीं चाहता शायद जिनकी वजह से आज बेचन है, उदास है उनको चोट पहुचाये...

आज नजाने क्यूँ ऐसा व्यतीत हो रहा है जैसे जो कल तक साथ चल रहे थे आज अचानक उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया..या जान कर भी अनजान हो गए है...जैसा अब व्यतीत हो रहा है पहले कभी क्यूँ ना हुआ ,,,

क्या भरोसा करना गुनाह है ? हाँ तो क्यूँ ? नहीं तो भी क्यूँ ?? क्यूँ ? शायद इस का जवाब आप भी दूंद रहे होंगे... क्यूँ इंसान की ज़िन्दगी में ऐसे सवाल उठ कड़े हो जाते है जिन सवाल का जवाब नहीं होता ... क्यूँ साथ चलने वाले दोस्त भी अनजान हो जाते है क्यूँ?...

आज मैं इन् सवालों के घेरे में इस कदर घिर चुकी हूँ की मुझे दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है .. दूर दूर तक कोई अपना नज़र नहीं आ रहा है... आज अकेली हूँ मैं...हाँ अक दम अकेली...गुमनाम काले भवंडर में मुझे अपने चक्कर में जो कैद किया सब अपने दूर भाग गए मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर...

क्या करूँ , क्या न करूँ... कुछ समाज नहीं आ रहा .. बस आज यही चाहती हूँ खुदा से के दिल के घाव जल्दी से भर जाए और वक़्त इस गाव के निसान को मिटा दे ताकि कोई भी कलिश बाकी न रहे वरना ज़िन्दगी जीना मुमकिन ना होगा...

लेखिखा
"दिव्या"

Thursday, December 17, 2009

हमारा भाग्य हमारे हाथो में है!

भाग्य - आज शायद बहूत सारे भाग्य को मानते है , अपनी जीवन की हर कड़ी को भाग्य से जोड़ते हुए अपने आने वाले कल का फैसला करते है! आज हर कोई अपने भाग्य से लड़ना चाहता है वोह चाहता है की उसका भाग्य उसका साथ हर जगह दे... परन्तु क्या आप जानते है ? भाग्य क्या है और इसका फैसला कैसे होता है...

मैं यहाँ कुछ ऐसी बातों का वर्णन करने जा राइ हूँ जिस बात से कुछ लोग सहमत होंगे पर कुछ नहीं...

भाग्य शब्द से अभिप्राय है जो कुछ भी बागवान लिखा है बाले ही अच्छा हो या बुरा ! परन्तु मैं यह नहीं मानती, भगवान् ने हमारे भगाया लिखा है  पर वोह हमारे जनम और मरण तक सीमित है. ( मैं यहाँ धर्म से जुडी बातों का वर्णन नहीं कर रही और न ही करना चाहती हूँ मैं एक इन्सान की नजरो से जो महसूस किया है बस उन् बातों का आपके समक्ष रख रही हूँ !

जैसे मैंने ऊपर लिखा है मरण और जीवन भगवान् ने लिखा है परन्तु हम अपने जीवन में कैसा मुकाम पायेंगे ये हमारे हाथों में है... कोई गरीब होता है तो कोई अमीर लेकिन इसका मतलब ये नहीं की गरीब अमीर नहीं बन सकता और अमीर गरीब नहीं... जहाँ तक मैंने सुना और पड़ा ये देखा है ये जाना है वोह ये की आज जितने लोग कामयाब है उनमे से अधिकतर लोग निम्न स्तर से उच्च स्तर की और गए है जो भी जीवन वोह आज जी रहे है वोह उन्होंने खुद अपने लिए अपने अंतर्मन से चुना है!

जब भी हम गलत होते है हाँ भगवान् हमें सही राह दिखाते है पर उस इस्शारे को समझ के अपना और उसको अनदेखा करना इंसान के हित में ही होता है ...

एक कहानी सुनाती हूँ :- ( शायद आपने कभी सुनी होगी !)

एक बार एक गाव में बाद आ जाती है सब लोग नाव की मदद से सुरक्षित स्तान पर जाने लगते है परन्तु एक व्यक्ति नहीं जाता और अपने घर की पहली मंजिल में चढ़ जाता है..जब लोग उसके घर के बहार से नाव की मदद से दूसरी जगह जा रहे होते है तो उसको कहते है - भाई चलो बाढ़  नहीं रुकने वाली - तो वोह कहता है - मैं नहीं जाऊंगा भगवान् बचायेंगे ...( फिर वोह गाव वाले चले जाते है ) ... बाढ़ का पानी और ऊपर बढता है तो वोह व्यक्ति घर की दूसरी मंजिल में चढ़ जाता है - गाव वाले फिर बुलाते है - वोह फिर कहता है मैं नहीं आऊंगा मुझे भगवान् बचायेंगे... ( फिर गाव वाले चले जाते है ) ...बाढ़ का पानी और बढता है और वोह व्यक्ति अपने घर की तीसरी मंजिल में चढ़ जाता है - फिर गाव वाले उसको बुलाते है - वोह फिर मना कर देता है और कहता है भगवान् मुझे बचायेंगे...( गाव वाले फिर चले जाते है ) - बाढ़ का पानी और बढता है और वोह व्यक्ति अपना जीवन खो देता है ---

इस कहानी से मैं ये कहना चाहती हूँ की भगवान् ने उसके जीवन का अंत नहीं लिखा था परन्तु भगवान् के बार बार दिए मौके को अनदेखा कर उसने खुद अपने लिए ऐसा भाग्य चुना जिससे उससे अपनी ज़िन्दगी खो दी...

इसी प्रकार हमारा भाग्य हमारे हाथों में होता है अपने अपनी सूझ भूझ से अपने सामने आने वाले मौके को पहचानना चाहिए और अपने जीवन की  लक्ष्य की और निरंतर बड़ते रहना चाहिए...

हमारा भाग्य हमारे हाथो में है चाहे तो हम इसे बिगाड़ सकते है या तो सवार सकते है...शांत मन हमें अपने भाग्य को सवारने में हमारी मदद करता है है...

क्या कहते है आप ?

लेखिखा 
दिव्या    



Friday, December 11, 2009

सीखना और सीखाना - जीवन की दो क्रिया

दुनियां बहूत बड़ी है और इस दुनियां में बहूत सारे लोग है जो अलग अलग काम करते है पर जानते है सबके ही मकसद है ? जी हाँ सही पढ़ा आपने ही मकसद दो ही लक्ष्य और वोह है – “सीखना और सीखाना”

सीखना और सीखाना ये दोनों ही शब्द एक ही शब्द से सुरु होते है वोह है “सीख”। सीख से अभिप्राये है अनुभव ।


अनुभव का प्रोयोग मैंने यहाँ इस कारण वर्ष किया है क्युंकी किसी भी प्रकार के ज्ञान का अनुभव कोई भी जनम जात नही पता है … ये भी एक प्रक्रियां है जिसमे मनुष्य की जिज्ञासा उसको प्रेरित करती है अनुभव प्राप्त करने के लिए…

सीखना हर व्यक्ति चाहता है और जो सीखने की प्रक्रिया में थोड़े आगे बढ जाते है वोह सीखना शुरू करते है…

आज हम सब किसी भी कार्य से क्यूँ न जुड़े हो हम ये दोनों क्रिया करते है.. सीखते है और सीखते भी है…

उदाहरण के लिए :-
१)जैसे हमरे माता पिता ने अपने माता पिता से सीखा और फ़िर हमें सीखने लगे ,आगे हम अपने आने वाली पीढ़ियों को सीखाएँगे ...


२) जैसे किसी कंपनी का मालिक पहले ख़ुद सीखता है फ़िर अपने करमचारियों को सीखता है …

परन्तु सीखने और सीखने की प्रक्रिया में इंसान अपने आप पर गुरुर करने लगता है वोह सीखाने तो लग जाता है पर आगे सीखना नही चाहता ऐसी में इंसान अपने निम्न स्तर में पहुँच जाता है जहाँ से उसने सीखना शुरु किया था …

हम सबी जानते है कोई भी कभी भी सम्पूर्ण नही बन सकता है… जैसे जीवन की पहली सीढ़ी हो या आखिरी इंसान सम्पूर्ण नही होता वोह शुरु से अंत तक इन दो (सीखने और सीखाने ) की प्रक्रिया में ही रहता है…

इसलिए हमें अपने अनुभव पर गमड नही करना चाहिए , जहाँ एक और हम सीखते है वही दूसरी और हमें ख़ुद भी सीकने की लालसा को अपने मन में कायम रखनी चाहिए तभी हम जीवन के सफर में कामयाब हो सकेंगे…

जब कभी आपको कोई कुछ सीखने की कोशिश करेगा तो जानते है ना आपको क्या करना है?
जी हाँ सीखना और सीखाना है परन्तु ध्यान रहे अच्छी सीख जीवन के अन्धकार को मिटा कर प्रकाश लाती है वही बुरी सीख प्रकाश को भी अंधेरे में परिवर्तित कर देती है…




लेखिखा
दिव्या

Sunday, December 6, 2009

यादें ...



अक्सर युहीं ख्याल आ जाता है , वोह बचपन सुहाना , वोह दोस्तों की मस्ती और उनका याराना ! जैसे जैसे ज़िन्दगी के पड़ाव में आगे बढ़ने लगे वैसे वैसे सुहाने पल यादों में तब्दील होने लगे , मनो कल ही बात थी जब हम साथ बैठ कर बातें किया करते थे , साथ मिलकर खूब सारी मस्ती किया करते थे... वोह बारिश में भीगना , नाव बनाना , स्कूल के रूल तोड़ना , अध्यापिका की डांट खाना, चुप चुप के क्लास में लंच करना... अब तो सब यादें रह गई है और जो पल अब गुज़र रहे है वोह भी कल यादें बन कर रह जाएँगी...

वक्त कितनी जल्दी आगे बढता है ना , ये साल अभी शुरू ही हुआ था मनो और ख़तम भी होने को है...हल पल अपनी मुट्टी में कैद करने को जी चाहता है! हर लम्हों को तस्वीर में कैद करने को जी चाहता है , ताकि कोई भी पल ज़ेहन से निकल न जाए ...

कभी कभी इन खूबसूरत पालो को यादें बनता देखती हूँ तो बहूत डर लगता है , कहीं ये पल रेत की तरह हाथो से सरकते हुए ,हमें अकेला ना छोड़ दे , पलके झपकते ही कही आँखों से ओजल ना हो जाए...

पर लम्हों को यादें बनने से कौन रोक पाया है... बस इसी कोशिश में हूँ की हर पल को सितारों से जगमगा दूँ ताकि जब ये यादें बन कर याद आए तो अपने साथ मुस्कराहट को साथ लाये और मन में नई ताजगी भर जाए...

शुक्रिया दोस्तों मुझे ख़ुद से मिलाने के लिए और मुझे अपना सबसे प्यारा दोस्त बनाने के लिए...

लेखिखा
"दिव्या"