ज़िन्दगी खफा खफा सी लगती है ,
मौजो की रवानी आज बेवफा सी लगती है,
बंद थे जो सच किसी पन्ने किसी किताब में,
आज वोह कहानी अनजानी सी लगती है !!
ज़िन्दगी क्या क्या रंग दिखाती है, कभी हसती तो कभी रुलाती है... ऐसे ही कुछ काली स्याही से लिखे अरमान जो अरमान ही रह गए और कुछ ऐसे भी लोग थे जो साथ चलते थे पर आज मुस्किल मोड़ पे अनजान हो गए...
साल मनो सुरु ही हुआ और अब ख़तम होने को है... पर ये अंत उन् गुज़ारे सालो जैसा नहीं है ,.. कुछ कडवाहट है कुछ बातें है जो दिल से बहार आने को उतावला हो रहा है पर क्या करे कमबख्त ये दिल न समाज है ..ना जाने क्यूँ सच जानते हुए हुए बी अनजान बना हुआ है... क्यूँ क्यूँ नहीं कह प् रहा है अपने दिल का हाल ? किस वक़्त के इंतज़ार में है...? जाने क्यूँ ये आज चुप है ... शायद नहीं चाहता की किसी और को तकलीफ दे.... नहीं चाहता शायद जिनकी वजह से आज बेचन है, उदास है उनको चोट पहुचाये...
आज नजाने क्यूँ ऐसा व्यतीत हो रहा है जैसे जो कल तक साथ चल रहे थे आज अचानक उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया..या जान कर भी अनजान हो गए है...जैसा अब व्यतीत हो रहा है पहले कभी क्यूँ ना हुआ ,,,
क्या भरोसा करना गुनाह है ? हाँ तो क्यूँ ? नहीं तो भी क्यूँ ?? क्यूँ ? शायद इस का जवाब आप भी दूंद रहे होंगे... क्यूँ इंसान की ज़िन्दगी में ऐसे सवाल उठ कड़े हो जाते है जिन सवाल का जवाब नहीं होता ... क्यूँ साथ चलने वाले दोस्त भी अनजान हो जाते है क्यूँ?...
आज मैं इन् सवालों के घेरे में इस कदर घिर चुकी हूँ की मुझे दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है .. दूर दूर तक कोई अपना नज़र नहीं आ रहा है... आज अकेली हूँ मैं...हाँ अक दम अकेली...गुमनाम काले भवंडर में मुझे अपने चक्कर में जो कैद किया सब अपने दूर भाग गए मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर...
क्या करूँ , क्या न करूँ... कुछ समाज नहीं आ रहा .. बस आज यही चाहती हूँ खुदा से के दिल के घाव जल्दी से भर जाए और वक़्त इस गाव के निसान को मिटा दे ताकि कोई भी कलिश बाकी न रहे वरना ज़िन्दगी जीना मुमकिन ना होगा...
लेखिखा
"दिव्या"