ज़िन्दगी कितनी करवट बदलती जाती है
हर मोड़ पे एक नई राह लिखती जाती है
सोचते है के अब संभलेगी ये ज़िन्दगी
पर ये तो हर बार भिखरती जाती है !!!!
कभी कभी क्यूँ ऐसा लगता है की ज़िन्दगी ढेर सारी खुशियाँ दामन में भर देगी फिर पलक जपकते ही वोह सारी खुशिया गम में बदल जाती है !
जब कभी मन गबराता है तो ऐसा लगता है की शायद भगवान् ने सारे गम हमारे ही हिस्से भर दिए है... उस वक़्त न दिल काम करता है न दीमाग... सब अपनी ही दिशा में भाग रहे होता है... सही क्या है गलत क्या है कुछ समाज नहीं आता .. लगता है तेज़ तूफ़ान ने जैसे चलती हुई ज़िन्दगी को अपने आगोश में भर के उसकी रफ़्तार पे रोक लगा दी है...
लोगो पर से भरोसा उठ जाता है... एक इंसान एक साया सा नज़र आता है जो अँधेरा होते ही तुमारा साथ छोड़ देता है... अकेला बेबस सा छोड़ देता है जहाँ पर कोई अपना पराया नहीं होता ... न ही वोह साया उस अंधियारे में तुमारी तरफ आने की कोशिश करता है...
क्यूँ ? इस क्यूँ के सिवा कोई और प्रश्न ज़ेहन में नहीं आता , लगता जैसे तुमरे मन मा आस जगा कर तुमसे सब कुछ चीन लिया हो.. जैसे भूक से भिलकते बच्चे को खाना दिखा कर छीन लेना...
पर जानते है ये सारे धुक एक पल में गायब हो जाते है जब हमसे भी ज्यादा धुकी होता है... इसलिए... जब भी दुख हो जब भी तकलीफ हो.. एक बार अपनी आँखे बंद करके किसी ऐसे व्यक्ति या ऐसे इंसान के बारे मा सोचना जो तुमसे भी जयादा तकलीफ में हो.. तुमरे दुःख उसके सामने छोटा लगने लगेगा और तुमको हिम्मत मिलेगी अपनी तकलीफों से लड़कर उभरने के लिए...
अपना ख्याल रखना...!
दिव्या !
Wednesday, June 2, 2010
Friday, February 5, 2010
हमारी माँ को मत बाटों !!!
भारत को आज़ाद हुए साल हो गए पर क्या सही माएने में देश आज़ाद है ? नहीं ! जी हाँ आज भी देश को असामाजिक तत्वों ने अपने जाल में इस कदर जकड रखा है की मासूम लोग भी इसके नापाक इरादों से बच नहीं पाते ! जो सरकार चला रहे है वोह खुद इसके प्रभाव से बच नहीं पाते और न सरकार को खड़ा करने वाले आम लोग... कभी भष्टाचार , तो कभी देश को टुकडो में बांटने वाले जाती धरम के ठेकेदार !
हर कोई यहाँ सिर्फ अपने बनाये नियमो पे चलना चाहता है , चाहता है की सामने वाला व्यक्ति भी उसकी पूजा करे और उसके बताये रस्ते पर चले .. मेरा देश मेरा वतन करने वाले लोग ही सबसे पहले अपने पैर पीछे खींच लेते है जब देश में कोई मुसीबत को आपदा आती है तो ! तब ये कायर लोग सामने क्यूँ नहीं आते ? क्यूँ ?
" सामना " ये ब्लॉग एक ऐसी व्यक्ति की करतूत बयान करता है जो खुद कुछ नहीं कर सकता , कुछ बाला नहीं कर सकता और देश में आये दिन बटवारे जैसे कारको को सामने ला ला कर देश के लोगो के अंदर एक दुसरे के प्रति हीन भावना पैदा करने की पूरी कोशिश कर रहा है...
भारतवर्ष में सबका एक सामान अधिकार है सबको साथ चलने , हर धर्म , भाषा का प्रोग करने का पूर्ण अधिकार है फिर क्यूँ ऐसे लोगो की बातें मुंबई के लोग सुन रहे है ? क्यूँ ? क्या उनके मन में इतना कॉफ़ समां गया है या फिर वोह देश को बातें वाली सोच को सही मानते है ? या फिर वोह ये सोच रहे है की जो हो रहा है होने दो ये कभी रुकने वाला नहीं.. आज ये चुप होगा तो कल कोई और ऐसी आसामाजिक बातें दोहराएगा ?
इन् जनाब की बात को एक तरफ़ा रख दे तो दूसरी तरफ राज्यों को अलग नाम देने की बातें सामने आ रही है जैसे की तेलन्गाना मामला सामने आया फिर उतर प्रदेश को अलग अलग राज्यों में बाटने की बातें !
देश वैसे ही अनेक उल्जनो से जुन्ज रहा है ऊपर से ये आतंरिक मामले सुलाजाने के बदले और बढ रहे है.. अगर देश सारी सुरक्षा देश के अंदर की लगा देगा तो पडोसी राज्यों से हो रहे हमलो की सुरक्षा क्या ये देश को बाटने वाले लोग करेंगे....
जब चल रही होंगी देश में गोलिया बह रहा होगा हर तरफ खून ही खून तब ये क्या घोड़े बेच कर सो जातें है ? तब क्यूँ नहीं सामने आते ये समाज के ठेकेदार ? क्यूँ? क्यूंकि ये कायर है बस लोगो की भावनाओं के साथ खेलना आता है इनको , चाहे उन् भावनाओं में बह लोग एक दुसरे की जान ही क्यूँ न ले ले इनको कोई फरक नहीं पड़ेगा...
देश में अनेक समस्याए पहले से ही है सबसे बड़ी तो "ग्लोबल वार्मिंग" जिसके लड़ने के लिए पूरा विश्व आगे बढ रहा है , ये ठेकेदार देश को इस समाया से लड़ने की प्रेरणा क्यूँ नहीं देते ? देश में बेरोजगारी बढ रही है फिर ये ठेकेदार लगू उद्यूग या अनय बेरोजगारी को मिलाने वाले सन्देश क्यूँ नहीं देते ? देश में आज भी कोई लोग भूक से भिलाकते रहते है ये ठेकदार उस भूक को मिटने के बारे में क्यूँ नहीं सोचते ? देश में कूड़ा करकट हर तरफ फेल रहा है ये देश में साफ़ सफाई रखने का संदेश क्यूँ नहीं देते ? क्यूंकि ये जानते है बुराई अचाई से पहले प्रभाव डालती है ... फूट डालो और शासन करो बस यही नियम है इनका...जो कभी किसी का भला नहीं सोच सकते ...!!
सरकार को इन लोगो के ब्लॉग को कारिज कर देना चाहिए ताकि ये लोग और कोई ऐसी हरकते या ऐसे संकेत न दे की देश की जनता आपस में लड़ मरे....
ये भारत हमारी माता है हमारी माँ ! जो हमें खिलाती है हमें अपने में संजोये है ? फिर हम अपनी माँ को केसे अलग कर सकते है ? बचा लो अपनी माँ को .. लिखो ब्लॉग अपने देश में पनप रहे ऐसे असामाजिक तत्वों को मिटने के लिए ... छोटी छोटी कोशिश आगे चल कर मुकाम जरुर हासिल करेगी... !
जय हिंद!
लेखिखा
" दिव्या"
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Thursday, January 7, 2010
मीठी सी मुस्कान थी उसकी..
मीठी सी मुस्कान थी उसकी ,आँखों में अक अजीब सी कशिश थी , मानो कुछ कहना चाह रही थी वोह अपनी जुबान से उसकी मासूमियत ने मेरे दिल में एक अनचाही सी उम्मीद एक खवाब सजा दिए ...
रंग उसका ऐसा था जो हर भाव में एक मीटास लिए था , एक जादू था उसमे जैसे किसी ने चन्दन की लकड़ी से उसका ये रूप सजाया हुआ है और फूलो सी खुसबू उसके तन में भर दी हो...
किसी परी से कम नहीं थी वोह ! उसका धीरे से पलके जपकना, खिलखिलाना और बहूत ही प्यार से मेरी उंगली को तामना और फिर से मुस्कराना ... मानो मेरे अदूरेपन को हर पल पूरा कर रहा हो , मुझसे कह रहा हो , मुझे खुद से कभी अलग मत करना , हर पल मेरे संग रहना ... जी तो कर रहा था की दुनिया भर की खुशियाँ उसके दामन में भर दूं , उसका गम मैं ले लूँ और उसके दमन में खुद के खवाबो को निछावर कर दूँ ...
अपने प्यारे से छोटे छोटे कदमो से वोह मेरी और बड़ी और आकर मेरी गोद में बैठ कर उसने धीरे से अपनी कोयल जैसी आवाज़ में कहा "माँ" ..और फिर मुस्कराने लग गयी...
उसकी खिल्कारी में मैं ऐसी डूबी की मेरी आँखे खुल गई और मैं सपने से हक्कीकत में लौट आई ... एक लम्बी सी आह भरी और फिर से उस सपने में लौट जाने की कोशिश की ... पर जा न पाई...
वोह पल ज़िन्दगी से अनमोल पल सा होकर रह गया... शायद एक याद एक झरोका बन कर...
ये सपने भी न कभी कभी क्या क्या रंग दिखाते है... कभी हसते है तो कभी रुलाते है...और कभी कभी एक अजीब सी , मासूम सी ... ख्वाइश झोली में भर जाते है...
लेखिखा
"दिव्या"
रंग उसका ऐसा था जो हर भाव में एक मीटास लिए था , एक जादू था उसमे जैसे किसी ने चन्दन की लकड़ी से उसका ये रूप सजाया हुआ है और फूलो सी खुसबू उसके तन में भर दी हो...
किसी परी से कम नहीं थी वोह ! उसका धीरे से पलके जपकना, खिलखिलाना और बहूत ही प्यार से मेरी उंगली को तामना और फिर से मुस्कराना ... मानो मेरे अदूरेपन को हर पल पूरा कर रहा हो , मुझसे कह रहा हो , मुझे खुद से कभी अलग मत करना , हर पल मेरे संग रहना ... जी तो कर रहा था की दुनिया भर की खुशियाँ उसके दामन में भर दूं , उसका गम मैं ले लूँ और उसके दमन में खुद के खवाबो को निछावर कर दूँ ...
अपने प्यारे से छोटे छोटे कदमो से वोह मेरी और बड़ी और आकर मेरी गोद में बैठ कर उसने धीरे से अपनी कोयल जैसी आवाज़ में कहा "माँ" ..और फिर मुस्कराने लग गयी...
उसकी खिल्कारी में मैं ऐसी डूबी की मेरी आँखे खुल गई और मैं सपने से हक्कीकत में लौट आई ... एक लम्बी सी आह भरी और फिर से उस सपने में लौट जाने की कोशिश की ... पर जा न पाई...
वोह पल ज़िन्दगी से अनमोल पल सा होकर रह गया... शायद एक याद एक झरोका बन कर...
ये सपने भी न कभी कभी क्या क्या रंग दिखाते है... कभी हसते है तो कभी रुलाते है...और कभी कभी एक अजीब सी , मासूम सी ... ख्वाइश झोली में भर जाते है...
लेखिखा
"दिव्या"
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