Tuesday, December 29, 2009

ज़िन्दगी खफा खफा सी लगती है !



 
ज़िन्दगी खफा खफा सी लगती है ,
मौजो की रवानी आज बेवफा सी लगती है,
बंद थे जो सच किसी पन्ने किसी किताब में,
आज वोह कहानी अनजानी सी लगती है !!

ज़िन्दगी क्या क्या रंग दिखाती है, कभी हसती तो कभी रुलाती है... ऐसे ही कुछ काली स्याही से लिखे अरमान जो अरमान ही रह गए और कुछ ऐसे भी लोग थे जो साथ चलते थे पर आज मुस्किल मोड़ पे अनजान हो गए...

साल मनो सुरु ही हुआ और अब ख़तम होने को है... पर ये अंत उन् गुज़ारे सालो जैसा नहीं है ,.. कुछ कडवाहट है कुछ बातें है जो दिल से बहार आने को उतावला हो रहा है पर क्या करे कमबख्त ये दिल न समाज है ..ना जाने क्यूँ सच जानते हुए हुए बी अनजान बना हुआ है... क्यूँ क्यूँ नहीं कह प् रहा है अपने दिल का हाल ? किस वक़्त के इंतज़ार में है...? जाने क्यूँ ये आज चुप है ... शायद नहीं चाहता की किसी और को तकलीफ दे.... नहीं चाहता शायद जिनकी वजह से आज बेचन है, उदास है उनको चोट पहुचाये...

आज नजाने क्यूँ ऐसा व्यतीत हो रहा है जैसे जो कल तक साथ चल रहे थे आज अचानक उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया..या जान कर भी अनजान हो गए है...जैसा अब व्यतीत हो रहा है पहले कभी क्यूँ ना हुआ ,,,

क्या भरोसा करना गुनाह है ? हाँ तो क्यूँ ? नहीं तो भी क्यूँ ?? क्यूँ ? शायद इस का जवाब आप भी दूंद रहे होंगे... क्यूँ इंसान की ज़िन्दगी में ऐसे सवाल उठ कड़े हो जाते है जिन सवाल का जवाब नहीं होता ... क्यूँ साथ चलने वाले दोस्त भी अनजान हो जाते है क्यूँ?...

आज मैं इन् सवालों के घेरे में इस कदर घिर चुकी हूँ की मुझे दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है .. दूर दूर तक कोई अपना नज़र नहीं आ रहा है... आज अकेली हूँ मैं...हाँ अक दम अकेली...गुमनाम काले भवंडर में मुझे अपने चक्कर में जो कैद किया सब अपने दूर भाग गए मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर...

क्या करूँ , क्या न करूँ... कुछ समाज नहीं आ रहा .. बस आज यही चाहती हूँ खुदा से के दिल के घाव जल्दी से भर जाए और वक़्त इस गाव के निसान को मिटा दे ताकि कोई भी कलिश बाकी न रहे वरना ज़िन्दगी जीना मुमकिन ना होगा...

लेखिखा
"दिव्या"

Thursday, December 17, 2009

हमारा भाग्य हमारे हाथो में है!

भाग्य - आज शायद बहूत सारे भाग्य को मानते है , अपनी जीवन की हर कड़ी को भाग्य से जोड़ते हुए अपने आने वाले कल का फैसला करते है! आज हर कोई अपने भाग्य से लड़ना चाहता है वोह चाहता है की उसका भाग्य उसका साथ हर जगह दे... परन्तु क्या आप जानते है ? भाग्य क्या है और इसका फैसला कैसे होता है...

मैं यहाँ कुछ ऐसी बातों का वर्णन करने जा राइ हूँ जिस बात से कुछ लोग सहमत होंगे पर कुछ नहीं...

भाग्य शब्द से अभिप्राय है जो कुछ भी बागवान लिखा है बाले ही अच्छा हो या बुरा ! परन्तु मैं यह नहीं मानती, भगवान् ने हमारे भगाया लिखा है  पर वोह हमारे जनम और मरण तक सीमित है. ( मैं यहाँ धर्म से जुडी बातों का वर्णन नहीं कर रही और न ही करना चाहती हूँ मैं एक इन्सान की नजरो से जो महसूस किया है बस उन् बातों का आपके समक्ष रख रही हूँ !

जैसे मैंने ऊपर लिखा है मरण और जीवन भगवान् ने लिखा है परन्तु हम अपने जीवन में कैसा मुकाम पायेंगे ये हमारे हाथों में है... कोई गरीब होता है तो कोई अमीर लेकिन इसका मतलब ये नहीं की गरीब अमीर नहीं बन सकता और अमीर गरीब नहीं... जहाँ तक मैंने सुना और पड़ा ये देखा है ये जाना है वोह ये की आज जितने लोग कामयाब है उनमे से अधिकतर लोग निम्न स्तर से उच्च स्तर की और गए है जो भी जीवन वोह आज जी रहे है वोह उन्होंने खुद अपने लिए अपने अंतर्मन से चुना है!

जब भी हम गलत होते है हाँ भगवान् हमें सही राह दिखाते है पर उस इस्शारे को समझ के अपना और उसको अनदेखा करना इंसान के हित में ही होता है ...

एक कहानी सुनाती हूँ :- ( शायद आपने कभी सुनी होगी !)

एक बार एक गाव में बाद आ जाती है सब लोग नाव की मदद से सुरक्षित स्तान पर जाने लगते है परन्तु एक व्यक्ति नहीं जाता और अपने घर की पहली मंजिल में चढ़ जाता है..जब लोग उसके घर के बहार से नाव की मदद से दूसरी जगह जा रहे होते है तो उसको कहते है - भाई चलो बाढ़  नहीं रुकने वाली - तो वोह कहता है - मैं नहीं जाऊंगा भगवान् बचायेंगे ...( फिर वोह गाव वाले चले जाते है ) ... बाढ़ का पानी और ऊपर बढता है तो वोह व्यक्ति घर की दूसरी मंजिल में चढ़ जाता है - गाव वाले फिर बुलाते है - वोह फिर कहता है मैं नहीं आऊंगा मुझे भगवान् बचायेंगे... ( फिर गाव वाले चले जाते है ) ...बाढ़ का पानी और बढता है और वोह व्यक्ति अपने घर की तीसरी मंजिल में चढ़ जाता है - फिर गाव वाले उसको बुलाते है - वोह फिर मना कर देता है और कहता है भगवान् मुझे बचायेंगे...( गाव वाले फिर चले जाते है ) - बाढ़ का पानी और बढता है और वोह व्यक्ति अपना जीवन खो देता है ---

इस कहानी से मैं ये कहना चाहती हूँ की भगवान् ने उसके जीवन का अंत नहीं लिखा था परन्तु भगवान् के बार बार दिए मौके को अनदेखा कर उसने खुद अपने लिए ऐसा भाग्य चुना जिससे उससे अपनी ज़िन्दगी खो दी...

इसी प्रकार हमारा भाग्य हमारे हाथों में होता है अपने अपनी सूझ भूझ से अपने सामने आने वाले मौके को पहचानना चाहिए और अपने जीवन की  लक्ष्य की और निरंतर बड़ते रहना चाहिए...

हमारा भाग्य हमारे हाथो में है चाहे तो हम इसे बिगाड़ सकते है या तो सवार सकते है...शांत मन हमें अपने भाग्य को सवारने में हमारी मदद करता है है...

क्या कहते है आप ?

लेखिखा 
दिव्या    



Friday, December 11, 2009

सीखना और सीखाना - जीवन की दो क्रिया

दुनियां बहूत बड़ी है और इस दुनियां में बहूत सारे लोग है जो अलग अलग काम करते है पर जानते है सबके ही मकसद है ? जी हाँ सही पढ़ा आपने ही मकसद दो ही लक्ष्य और वोह है – “सीखना और सीखाना”

सीखना और सीखाना ये दोनों ही शब्द एक ही शब्द से सुरु होते है वोह है “सीख”। सीख से अभिप्राये है अनुभव ।


अनुभव का प्रोयोग मैंने यहाँ इस कारण वर्ष किया है क्युंकी किसी भी प्रकार के ज्ञान का अनुभव कोई भी जनम जात नही पता है … ये भी एक प्रक्रियां है जिसमे मनुष्य की जिज्ञासा उसको प्रेरित करती है अनुभव प्राप्त करने के लिए…

सीखना हर व्यक्ति चाहता है और जो सीखने की प्रक्रिया में थोड़े आगे बढ जाते है वोह सीखना शुरू करते है…

आज हम सब किसी भी कार्य से क्यूँ न जुड़े हो हम ये दोनों क्रिया करते है.. सीखते है और सीखते भी है…

उदाहरण के लिए :-
१)जैसे हमरे माता पिता ने अपने माता पिता से सीखा और फ़िर हमें सीखने लगे ,आगे हम अपने आने वाली पीढ़ियों को सीखाएँगे ...


२) जैसे किसी कंपनी का मालिक पहले ख़ुद सीखता है फ़िर अपने करमचारियों को सीखता है …

परन्तु सीखने और सीखने की प्रक्रिया में इंसान अपने आप पर गुरुर करने लगता है वोह सीखाने तो लग जाता है पर आगे सीखना नही चाहता ऐसी में इंसान अपने निम्न स्तर में पहुँच जाता है जहाँ से उसने सीखना शुरु किया था …

हम सबी जानते है कोई भी कभी भी सम्पूर्ण नही बन सकता है… जैसे जीवन की पहली सीढ़ी हो या आखिरी इंसान सम्पूर्ण नही होता वोह शुरु से अंत तक इन दो (सीखने और सीखाने ) की प्रक्रिया में ही रहता है…

इसलिए हमें अपने अनुभव पर गमड नही करना चाहिए , जहाँ एक और हम सीखते है वही दूसरी और हमें ख़ुद भी सीकने की लालसा को अपने मन में कायम रखनी चाहिए तभी हम जीवन के सफर में कामयाब हो सकेंगे…

जब कभी आपको कोई कुछ सीखने की कोशिश करेगा तो जानते है ना आपको क्या करना है?
जी हाँ सीखना और सीखाना है परन्तु ध्यान रहे अच्छी सीख जीवन के अन्धकार को मिटा कर प्रकाश लाती है वही बुरी सीख प्रकाश को भी अंधेरे में परिवर्तित कर देती है…




लेखिखा
दिव्या

Sunday, December 6, 2009

यादें ...



अक्सर युहीं ख्याल आ जाता है , वोह बचपन सुहाना , वोह दोस्तों की मस्ती और उनका याराना ! जैसे जैसे ज़िन्दगी के पड़ाव में आगे बढ़ने लगे वैसे वैसे सुहाने पल यादों में तब्दील होने लगे , मनो कल ही बात थी जब हम साथ बैठ कर बातें किया करते थे , साथ मिलकर खूब सारी मस्ती किया करते थे... वोह बारिश में भीगना , नाव बनाना , स्कूल के रूल तोड़ना , अध्यापिका की डांट खाना, चुप चुप के क्लास में लंच करना... अब तो सब यादें रह गई है और जो पल अब गुज़र रहे है वोह भी कल यादें बन कर रह जाएँगी...

वक्त कितनी जल्दी आगे बढता है ना , ये साल अभी शुरू ही हुआ था मनो और ख़तम भी होने को है...हल पल अपनी मुट्टी में कैद करने को जी चाहता है! हर लम्हों को तस्वीर में कैद करने को जी चाहता है , ताकि कोई भी पल ज़ेहन से निकल न जाए ...

कभी कभी इन खूबसूरत पालो को यादें बनता देखती हूँ तो बहूत डर लगता है , कहीं ये पल रेत की तरह हाथो से सरकते हुए ,हमें अकेला ना छोड़ दे , पलके झपकते ही कही आँखों से ओजल ना हो जाए...

पर लम्हों को यादें बनने से कौन रोक पाया है... बस इसी कोशिश में हूँ की हर पल को सितारों से जगमगा दूँ ताकि जब ये यादें बन कर याद आए तो अपने साथ मुस्कराहट को साथ लाये और मन में नई ताजगी भर जाए...

शुक्रिया दोस्तों मुझे ख़ुद से मिलाने के लिए और मुझे अपना सबसे प्यारा दोस्त बनाने के लिए...

लेखिखा
"दिव्या"

Wednesday, November 11, 2009

जिन्दगी इसी का नाम है ..

आज मैं जल्दी उठ गई थी रात भर नीद से सो नही पाई रोज़ मर्रा की जिन्दगी से तक गई थी शायद और कुछ संतुस्ठी जनक ना कर पाने की ललक ने मनो मुझे कमजोर बना दिया हो

फ़िर मैं उठ kar युहीं बाहर खुले आकाश की और देख रही थी, अब दिल्ली में ठण्ड बदती जा रही है। सुबह क लगभग ६.३० बजे थे और हल्का सा कोहरा चाय हुआ था और थोड़ा अँधेरा सा हो रहा था ॥ सुबह सुबह चिडियों की चेचाहत मन को अक सुकून एक आनद दे रही थी मन तो मेरा भी कर रहा था की उन् चिडयों के साग मन भी सुर सुर मिलों पर रूक गई की कही मेरी आवाज़ सुन कर वो कही भाग न जाए ! फ़िर धीरे धीरे दिन निकलने लगा सूरज की हलकी हलकी लाल किरण आकाश में फैलाने लगी और सूरज बदलो के पीछे से होते हुए आँख मिचोली सा खेलता हुआ प्रतीत हो रहा था॥

सुबह सुबह के सुंदर दृश्य को देख मन बहूत खुश था आज सुबह और सोचा की कहीं घूम के आ जाती हूँ इसी बहने थोडी कसरत भी हो जायेगी॥ दिल्ली की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में कसरत के लिए वक्त निकाल पाना बहूत्मुस्किल है ऊपर से आजकल ये फास्ट फ़ूड तो जल्दी हमें बूडा और कम्जूर बना देंगी...

युहीं चलते चलते रास्ते में अक गाये दिखी वोह अपने प्यारे से बछडे को सहला रही रही॥ आगे बड़ी तो देखा कुछ बच्चे स्कूल की बस कई इंतज़ार कर रहे थे और सुबह सुबह की ठण्ड से खुदको बचने के लिए हपने हाथो को मल मल के अपने गालो पे लगा रहे थे , उनको देख मुझे मेरे बच्चपन याद आ गया जब हम भी भरी बर्कम बसता उत सुबह सुबह स्कूल को जाया करते थे...

थोड़ा और आगि बड़ी तो एक चाय वाले की दूकान पे लोगो की बीद देखी लोगो की जो बस कई इंतज़ार करने के साथ चाय और समोसे कई आनंद ले रहे थे ... हाँ वैसे भी ठंडी के महीनो में भला कौन जल्दी उत्ता है जो अपने लिए नाश्ता बना सके और दिल्ली जैसे सेहर में जयतर लोग बहार से आए हुए है यहाँ काम करने के लिए और वोह सब बहार के खाने पे ही निर्भर है... और ऊपर से ये महंगाई मार ही डालेगी ..।

जैसे जैसे आगे बड़ी तो अक मोची दिखा जो लोगो को बुला बुला कर उनसे कह रहा था "भाई साहब पोलिश करा लो " उसकी हालत देख बहूत दुःख हुआ शायद बहूत तंगी थी उसको , उसको देख मन पसीज उठा !!

आगे एक मन्दिर दिखा वहां पर बहूत सारे लोग आए हुए थे बहूत से तो ऐसे शारीरिक रूप से असमर्थ थे और कुछ के आखो मा आँसू की धार साफ़ दिखाई दे रही थी॥ शायद सब भगवान के घर अपनी अपनी फरियाद ले कर आए थे॥ उन् सब के सामने मुझे मेरी तकलीफ और दर्द मनो कुछ भी नही लग रही थी और समाज ही नही आ रहा था की मैं भगवान् से मांगू तो क्या मांगू ?

बस भगवान् जी के आगे हाथ जोड़ कर वापस घर की तरफ़ लौट पड़ी और ख़ुद की काफ़ी हद्द तक सुकून की साँस लेते देखा की लोगो की पास इतनी तकलीफ है जिसके आगे मेरी तकलीफ तो कुछ भी नही और इसी बात को दिल में रख कर घर की और लौट गई मन में एक नई ताजगी लिए...

शायद इसी का नाम जिन्दगी है...

लेखिखा
"दिव्या"

Tuesday, November 10, 2009

दिल्ली - हाई फाई हो गई है

आज कल दिल्ली हाई फाई हो गई है, जहाँ एक और महगाई बड़ती जा रही है वहीँ दूसरी तरफ़ कॉम्मन वेअल्थ गेम क चलते आए दिन दिल्ली में नए नए परिवर्तन होते जा रहे है,,,

आज कल दिल्ली का सफर इतना महंगा हो गया की मनो ये दिल्ली नही हो कोई विदेश हो॥ पर महगाई के साथ साथ सर्विस भी अची होनी चाहिए की नही ?? पर सर्विस के नाम पर कुछ नही....

इतने सालो में मैंने महगाई को कभी महसूस नही किया या मुझे कभी परवा नही रही थी पर जब से बसों का किराया बड़ा मनो पहली बार मुझे महगाई का असली महत्व पता चला ॥ दिल्ली सरकार ने डीटीसी के हानि के चलते बसों का किराया बढाया पर ये बात समाज नही आई की उन्होंने प्राइवेट बसों को क्यूँ अनुमति दी बसों का किराया बढाने का ?? ( शायद इसलिए की अगर सिर्फ़ डीटीसी का किराया बढेगा तो कोई उसमे सफर नही करेगा ) पर अपने नुक्सान के चलते दूसरो पर अपना बोझ डालना कहाँ तक फायेदे मंद है ?

दिल्ली में लगभग ४०% से जायदा लोग ऐसे है जो प्राइवेट कंपनियो में काम करते है और उनमे से ३०-३५ प्रतिशत ऐसे लोग है जिनकी मासिक आए केवल ४००० -५००० महिना है॥ और उनकी आदि सेलरी बस के किराये में लग जाती है वोह क्या खायेंगे क्या बचायेंगे ? क्यूँ सरकार ये नही देखती है क्या उनकी आँखों में परदा डाला है या वोह चाहती ही नही है दिल्ली में गरीब लोग भी रहे ???

मुझे याद है जहाँ आज १५ रुपये किराया लगता है वहीँ जब मैं ८ साल की थी तब १ रुपये किराया लगता था ! कितना महगाई हो गई है दिल्ली में ?

मैं बस सरकार से ये कहना चाहती हूँ अगर वोह महगाई बड़ा रही है तो लोगो की मासिक आय को ध्यान में रख कर बदाये । इस तरह महगाई बढाने से लोगो की जीविका चलाने में बहूत गहरे प्रभाव पड़ता है ... सरकार क्या बनाना चाहती है दिल्ली को ?

क्या दिल्ली जैसे शहर में एक आम इंसान रह नही सकता ??
सच में अब तो ऐसा लगता है कुछ सालो में या कुछ महीनो में दिल्ली हाई फाई हो जायेगी ....

Monday, November 9, 2009

मेहनत करने वालो की कभी हार नही होती !

मेहनत करने वालो की हार नही होतीये वाक्या तो आप सब को बलि बांती स्मरण होगा बस इस पर कुछ लिखने की कोशिश की है...

सच कहा है किसी ने मेहनत करने वालो की कभी हार नही होती पर महेनत तभी रंग लाती है जब आपको अपने किए गए काम पर पूर्ण रूप से विश्वास हो, जी हाँमहेनत साथ अपने किए गए कार्य पर विश्वास होना भी अति आवश्यक है !!

मेरी एक अद्यापिका ने एक बार मुझे यही सीख दी थी जब मैं उनके दिए गए कार्य को याद कर रही थी , और उन्होंने आकर मुझे सराहा और कहा तुम इस बार कक्षा में अवस्य ऊथिर्ण करोगी और कहा की मेहनत करना ही काफ़ी नही है बल्कि अपनी मेहनत पे विश्वास करना भी उतना आवश्यक है क्यूंकि अगर अपने काम के प्रति विश्वास नही रखोगे तो वोह आपकी अंदर से कोकला बना देगी अआपकी उन्दरुनी सकती को कम्जूर कर देगी जिसके परिणाम सवरूप आपको हार का मुह देखना पड़ सकता हैहाँ विश्वास करने से तात्पर्य ये नही की तुम गमंड करो आपने काम पर, अपनी महेनत पे

लोग अकसर मेहनत करने के बाद भी डरते अगर मैं फेल हो गया तो ? अरे ! जब तुमने सच में मेहनत करते हो तो फ़िर डर किस बात का ? अगर फेल हो गए भी तो हमें हार नही मानना चाहिए क्यूंकि हार इंसान की चुनोतियों से लड़ने के लिए परिपक्व बनता है , जैसे एक हिरा को तराशने में मेहनत लगती है उसी प्रकार ख़ुद की तराशने में भी मेहनत लगती है ...

अब से जब भी आप मेहनत करे बस ख़ुद पर विश्वास रखे , उस ऊपर वाले ( खुदा ) पे विश्वास रखे और महेनत करते रहेसफलता आपके कदम जरुर चूमेगी

बेस्ट ऑफ़ लख !

लेखिखा
"दिव्या "


Tuesday, October 27, 2009

पहचान !

क्या आप अपने आप को पहचानते है ? नही ? तो फ़िर क्यूँ हम दुसरो को जानने पहचानने में अपना अधिकतर वक्त जाया करते है ?

कई बार ऐसे हालत उत्पन होते है जिन्दगी में जहाँ हम अपने आप में ही उलज कर रह जाते है और सही ग़लत का फ़ैसला दूसरो पर छोड़ देते है॥ जिन्दगी हमारी और फ़ैसला किसी और का? ये कैसा हिसाब है ?

जिन्दगी में अक्सर हम भी दुसरो को समजने और उनकी जीवन की उल्जनो को सुल्जाते सुल्जाते ख़ुद अपने आप से अपरिचित हो जाते है ॥ और तो और आज कल समाज में सभी वर्ग के लोगो में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने सब इतने खोये है की सायद की ख़ुद को समजने या जाने का किसी का पास वक्त भी बाकी है? अब तो हालत ऐसे है की सब लोग बस यही सोचते है की जो हो रहा है होने दो यारो कौन ज्यादा दिमाग कर्च करे और बेकार के जन्जतो में पड़े... यहाँ तक की किसी को ये भी परवा नही की उनकी जिन्दगी का मुक्य उद्देश्य क्या है? और उनको किस राह में जाना और क्या सही और क्या ग़लत है॥

इस बात पर एक बात याद आ गई ...:- एक बार मेरी फ्रेंड का भांजा घर आया हुआ था और इसकी उमर लगभग २ वर्ष की थी। तो वोह अपनी मस्ती में बालकनी की और जा रहा aur सामने से मेरे भाई आ रहा था और उसको जरा सी टक्कर लग गई और उसकी दिशा बदल गई किचन की और..तो उसने किचन की और बढना शुरु कर दिया और किचन से मेरी मम्मी बहार आ रही थी और फ़िर उस्सको टक्कर लग गई और उसकी दिशा फ़िर बदल बेडरूम की और और वोह बेडरूम की और चलने लगा...

इस कहानी से मै बस यही समजने की कोशिश कर रही हूँ की आज कल सब लोगो की हालत भी उस बच्चे के सामन हो गई है॥ जो जहाँ ले चले वोह उसी और चलने लगता है...ऐसे मै समाज का भी बाला नही होता और इंसान ख़ुद की पहच्चन खोता चला जा रहा है... ऐसे मै आप सब देखते ही होंगे की कल जो संस्कार हमारे पूर्वजो ने दिए थे वोह आज न क बराबर रह गए है॥ परवर्तन अनिवार्य है पर परविर्तन का मुकोटा पहन हम सच्चाई से तो नही भाग सकते न? सारी दुनिया से ख़ुद की बुरइयो को छुपा लोगे पर क्या कभी एकांत मै ख़ुद का सामना कर पाओगे ? सिर्फ़ इसका एक ही उत्तर है नही नही और सिर्फ़ नही !

इसलिए सबसे से पहले ख़ुद को समझो ख़ुद को पहचानो की तुम कौन हो ? तुमारा मजिल क्या है ? क्या जो तुम कर रहे हो वोह सब के हित मै है ? तुमरे कर्तव्य का है ?

ऐसी ही कई सावाल है जो ख़ुद से पूछोगे तो हर एक सवाल का उत्तर अपने आप ही सामने आ जाएगा॥ जो तुम्हें तुमरे अन्तेरात्मा से मिलाएगा और तुम सही मायने मा चैन की साँस ले सकोगे...

हमारी पहच्चान ही हमारा अस्तित्व है !

लेखिखा
"दिव्या"

Saturday, October 10, 2009

बछडा - एक सची घटना !

कुछ दिनों पहले की बात है युहीं रास्ते से गुज़रते हुए मैंने अक बछडे को देखा जो अपनी माँ की गोद में बेठा हुआ था और उसकी माँ उसको प्यार से सहला रही थी ॥

जैसे जैसे मैं उनके करीब गई देखा वोह मासूम बछडा पुरी तरह खून से लतपत था और उसकी माँ उसको पुचकार रही थी॥ उसकी ये दशा देख कर ऐसा व्यतीत हो रहा था मनो कोई गाड़ी वाला उसको मार कर गया हो... उस व्यक्ति को इस मासूम पर दया भी नही आई होगी ॥

शायद आज की दुनिया में इंसान, इंसान की परवाह नही करता उस दुनिया इंसानों से बेजुबान जानवर के लिए दया की उम्मीद करना शायद ख़ुद की नासमाजी होगी।

उस मासूम बछडे का दर्द मनो मेरे मन में उस व्यक्ति क प्रति करोड़ उत्पन कर रहा था और वहीँ दूसरी और उस बछडे का दर्द और उसके माँ की पीड़ा मेरे मन को कम्जूर कर रही थी... बछडे की माँ अपने बच्चे को गोद में लिए उसकी आंखिर साँसे गिन रही थी और अपनी ममता भरी आँखों से अपने बच्चे के दर्द को महसूस कर उसके दर्द को कम करने की नाकाम कोशिश कर रही थी और मनो उसका मासूम बछडा अपनी माँ से बिछड़ने के गम को मन में दबाए अपनी माँ को सान्तवना दे रहा हो॥

ये ख्याल एक का एक मन में उत्पन होने हो रहे थे॥ समाज नही आ रहा था की क्या करूँ या क्या ना करूँ॥ फिर मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी में डायल किया और उनसे एनीमल केयर वालो का नम्बर लिया और उनको फ़ोन करके बुलाया ॥ उनको आते आते लगभग आदा घंटा हो गया था और ऐसे में उस बछडे की हालत और कराब हो रही थी॥ गाये ने अपने बच्चे को और कस कर पकड़ रखा था मनो अभी वोह रो पड़ेगी ॥ उसकी आँखों से ऐसा साफ़ व्यतीत हो रहा था ॥

लगभग आदे घंटे बाद एनीमल केयर वाले आए और उस मासूम बछडे को उठा कर ले जाने लगे और उसकी माँ उनको ले जाने से रोकने की कोशिश करने लगी इस दोहरान २-३ बार उस एनीमल केयर वाले व्यक्ति को भी हाथ मा करोचे आ गई... ॥

पर उस का माँ की पीड़ा भी कम नही थी॥ ऐसे वक्त में अक माँ का साथ जरुरी होता है पर मैं उसकी ( बछडे ) की जान बचने की कोशिश में उसको उसकी माँ से दूर कर रही थी॥ शायद अभी उसकी जान बचाना जायदा जरुरी था॥

वोह उस बछडे को उठा कर ले गए और उकसी माँ उस गाड़ी की और की ताकती रही ....

उस माँ को तनहा छोड़ मैं भी घर की और निकल पड़ी ॥ मन में अक अजीब सा एह्साह लिए की क्या फ़िर वोह माँ बछडा मिल पायेगे॥ पर शायद जब मिलेंगे तो उसकी माँ के मन में होने वाली खुशी अनमोल होगी.....

लेखिखा
"दिव्या"

Friday, October 9, 2009

जिन्दगी के उतार चडाव में कभी हार नही मानना !

जिन्दगी बहूत खूबसूरत है हो सके तो कभी मन की आँखों से देखना!

जिन्दगी में हर किसी को उतार चडाव देखने को मिलते है हर बार मन् हारता हुआ सा नज़र आता है ना चाहते हुए भी मन में उठने वाले ख्याल मन में हलचल पैदा कर देते है जो हमारे अंतर्मन को कमजोर कर देता है मनो लगता है है दुनिया में हमारा कोई अस्तित्व नही है हमसे कोई खुश नही है॥

ऐसे ख्याल मन् को अक्सर दुविदा में डाल देते है की क्या करे या क्या ना करें, एसे वक्त में अच्छा सोच पाना मुस्किल सा लगता है , जो हमरे मन को अन्द्कार से निकलने नही देते और अपने में धीरे धीरे समा लेते है ॥ ऐसे हालत में मन पे काबू पा लेना मतलब अपने मन को जीत लेना होगा॥

हम हमेशा जिन्दगी में अच्छे और बुरे दोनों काम करते है और जब भी मन में ऊपर कहे गए हालत उत्पन हों तो आप उन् खूबसूरत लम्हों को याद करे जिसके कारण आपके चेहरे पे हसी आई हो, उन् लम्हों को याद करे जब आपके कारण किसी के आंसूं को आपने एक खिलखिलाती मुस्कराहट दी हो, उन् खूबसरत लम्हों को याद करें जब पुरा दिन बिताने के बाद आपने रात में चैन की साँस ली हो , उन् लम्हों को याद करें जब किसी ने आपकी प्रसंशा की और किसी को आपकी जरुरत पड़ी हो...

यकीन करें ये सारे लम्हे आपके मन में एक नई उमंग एक नई ताज़गी भर देंगे और आपको जीने की एक नई राह देंगे और सच माने दुःख के पल क्षण में दूर हो जायेंगे और खुशिया आपके कदम फिर से चूमेगी...

एक खिल्किलाती मुस्काराहट आ जायेगी आपके लबो पे उन् सुंदर लम्हों को याद करें, और वैसे भी किसी ने कहा है ना मुस्कराहट हर गम को दूर कर देती है :)

तो अगली बार जब भी आपका मन विचलित हो आप मेरी इन् बातो पे गौर फरमाइयेगा !!

उसी खूबसूरत मुस्कारत के साथ फ़िर लौटूंगी अपनी नई पोस्ट लेके !

लेखिखा
"दिव्या"

Sunday, October 4, 2009

जिन्दगी

जिन्दगी शब्द अपने आप में एक पहेली है जिससे समझ पाना एक आदमी के बस में नही...

जिन्दगी एक अनकहा खवाब है जो ख़ुद में अनेक रंग समेटे हुए है, कुछ खुशी के रंग, कुछ गम के रंग और कुछ ऐसे एहसास जो भुलाये नही बुले जाते है॥

जिन्दगी एक समुन्दर की लहर है जो आपको छु कर जब गुज़रती है तो मनो एक ख़ूबसूरत एहसास आपके ज़हन में भर जाती है, और इन लहरों के जितने करीब जाओगे उतने ही उसमे समाते जाओगे ...

जिन्दगी एक दिया है जो अपने में एक गहरे अंधेरे को समेटे हुए है... जैसे लहरें अपने में सब कुछ समेट वैसे ही जिन्दगी की रोशनी आपको खुशिया तो देती है और इससे जितना जाने की कोशिश करोगे येया अन्देरे गलियारों में ले जायेगी जहाँ से निकल पाना मुस्किल है ॥

जिंदगी में कई बार ऐसी बातों का सामना करना पड़ता है जिसका कारण तो हमें मालूम होता है मगर जवाब नही होता॥ उन सब बातों का हमारे जीवन, हमारे अस्तित्व पर बहूत गहरा प्रभाव होता है॥

कुछ लाइन अर्ज़ कर रही हूँ :-

जिंदगी हर पल करवट बदलती है ,
कभी साथ तो कभी दूर चलती है .
बदलती हुई जिंदगी मेरी ,
मेरे जीवन की बंदगी हो गई है
हाँ अब तो आदत सी हो गई है ...



लेखिखा
"दिव्या"

Friday, October 2, 2009

Begger - भिखारी

मेरा जन्मदिन था, दोस्तों के साथ खूब मस्ती करने के बाद मैं घर को रवाना हुई और बस में बेठ गई और बस के शीशे से सर टेक कर बेठ गई !

काफ़ी थक चुकी थी इसलिए मैंने थोडी देर के लिए आँखे बंद कर ली और ऐसे ही पुरे दिन की बातें सोच रही थी ! फ़िर थोडी देर में बस चलने लगी कुछ देर बाद बस एक बस स्टाप में रुखी और मेरी आँख खुली ॥ वहां से एक भिखारी बस में चडा और उसके हाथ में अक सितार था , फ़िर उसकी तरफ़ देखा मैंने और फ़िर शीशे पर टेक लगा लिया मैंने ... बस में रेडियो बज रहा था और थोडी देर बाद बस वाले ने रेडियो बंद कर दिया और एक बहूत प्यारी सी मधुर सी धुन बंजने लगी मेरी आंखे फ़िर खुली और देखा वोह भिखारी वोह धुन बजा रहा था

वोह इतना मधुर धुन बजा रहा था की बस में बेठा हर व्यक्ति उसकी धुन का आनंद ले रहा था । उसके सितार से निकली हर धुन मेरे पुरे दिन की थकन को दूर कर रही थी। और मनो ऐसा लगा की शायद वोह अपनी धुन में कह रहा हो " देखो मेरी हालत क्या है मेरी दुनिया क्या है और फ़िर भी मुझे किसी बात का दुख नही मेरे पास कला है जो मेरे जीने का जरिए है फ़िर भी लोग मुझे भखारी कहते है ''

वोह भखारी किसी की तरह नही देख रहा था वोह बस अपनी धुन बजा रहा था और मनो वोह अपनी ही धुन मा खोया हो... उसकी इस अनमोल कला को देख कर लग रहा था की उसके सामने मैं कुछ भी नही...

बस में बेठा हर व्यक्ति बिना उसके मांगे ही उसको अपनी मर्ज़ी से रुपये दे रहा था । येया भी नही की एक या दो रुपए बल्कि शायद ही किसी ने उसको पाँच रुपए से कम रुपये दिए हो॥ मनो उसने मेरे बर्थडे गिफ्ट दिया हो थो मैंने भी ख़ुद से ग्यारा रुपए निकाल कर उसको दिए !

फ़िर कुछ देर बाद लोग उससे अपने मन पसंद की धुन बजा रहे थे और वोह उस्सी बेहतरीन कला से सब की फरमाइश कर रहा हो॥ वोह थो सच में मेरी नज़र में अक रॉक स्टार था !

फ़िर मेरा बस स्टाप आया और मैं बस से उतर कर घर को जाने लगी , पर उस व्यक्ति की धुन अभी तक मेरे कानो में गूंज रही थी !

अब लग रहा था की क्यूँ इतनी कला से निपूर्ण होने के बाद भी लोग उसको भिकारी क्यूँ खेहते है क्या कोई नही जो उसको एक मुकाम दे सकता !

कुछ लाइन अर्ज़ कर रही हूँ इस घटना पर ...

जिन्दगी वक्त मांगती है ,
तरक्की को एक नई राह देने क लिए ,
इंसान उसी राह पर लगा देता है लगाम,
दुसरे को रुला, अपनी खुशी पाने के लिए !!

लेखिखा
"दिव्या "

Monday, September 28, 2009

Yoindia.com / Yoindia की कुछ कट्टी मीती बातें

Yoindia मेरी जिन्दगी का अक हसीन हिस्सा है जिसे मैं चाह कर भी ख़ुद से दूर नही कर सकती हूँ! हर एक पल यहाँ पर गुज़ारा हुआ एक खूबसूरत खवाब है, जो मुझसे मेरी जिन्दगी से इस कदर जुड़ गया है की शायद अब बयान करना मुस्खिल सा लगता है! योइनिडिया युहीं हमेशा खिलखिलाता रहे बसी यही दुआ करती हूँ!

कितने ही उतार चडाव आए योइंडिया में पर आज भी यहाँ वोह महक अब भी बाकी है ! यहाँ से मुझे बहूत कुछ सीकने को मिला , नए दोस्त मिले , नई-२ बातें सीकी , नए रंग देखे दुनिया के और थो और हर सपना मैंने अपने अल्फाज़ से सजाया !

ना दिन की परवाह या शाम की परवाह , यहाँ मस्ती में डूब कर सब इतने खो जातें है की वक्त का पता ही नही चलता ! आज की बात ही देख लो॥ सुबह के ९.३० बजे से ऑनलाइन हूँ यहाँ पर और अब इस वक्त रात के ९ बजने को आए है...कब दिन शुरू हुआ और कब रात हो गई पता ही नही चला !

बहूत सारी कटती मीटी यादें है , यहाँ हम सब अक परिवार की तरह है जहाँ लड़ना ,मानना, चिलाना , और बहूत सारी मस्ती करते है॥

बस ये कारवां युहीं आगे बढता रहे हमेशा हमेशा .......

लव यू योइंडिया॥

दिव्या