Tuesday, October 27, 2009

पहचान !

क्या आप अपने आप को पहचानते है ? नही ? तो फ़िर क्यूँ हम दुसरो को जानने पहचानने में अपना अधिकतर वक्त जाया करते है ?

कई बार ऐसे हालत उत्पन होते है जिन्दगी में जहाँ हम अपने आप में ही उलज कर रह जाते है और सही ग़लत का फ़ैसला दूसरो पर छोड़ देते है॥ जिन्दगी हमारी और फ़ैसला किसी और का? ये कैसा हिसाब है ?

जिन्दगी में अक्सर हम भी दुसरो को समजने और उनकी जीवन की उल्जनो को सुल्जाते सुल्जाते ख़ुद अपने आप से अपरिचित हो जाते है ॥ और तो और आज कल समाज में सभी वर्ग के लोगो में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ने सब इतने खोये है की सायद की ख़ुद को समजने या जाने का किसी का पास वक्त भी बाकी है? अब तो हालत ऐसे है की सब लोग बस यही सोचते है की जो हो रहा है होने दो यारो कौन ज्यादा दिमाग कर्च करे और बेकार के जन्जतो में पड़े... यहाँ तक की किसी को ये भी परवा नही की उनकी जिन्दगी का मुक्य उद्देश्य क्या है? और उनको किस राह में जाना और क्या सही और क्या ग़लत है॥

इस बात पर एक बात याद आ गई ...:- एक बार मेरी फ्रेंड का भांजा घर आया हुआ था और इसकी उमर लगभग २ वर्ष की थी। तो वोह अपनी मस्ती में बालकनी की और जा रहा aur सामने से मेरे भाई आ रहा था और उसको जरा सी टक्कर लग गई और उसकी दिशा बदल गई किचन की और..तो उसने किचन की और बढना शुरु कर दिया और किचन से मेरी मम्मी बहार आ रही थी और फ़िर उस्सको टक्कर लग गई और उसकी दिशा फ़िर बदल बेडरूम की और और वोह बेडरूम की और चलने लगा...

इस कहानी से मै बस यही समजने की कोशिश कर रही हूँ की आज कल सब लोगो की हालत भी उस बच्चे के सामन हो गई है॥ जो जहाँ ले चले वोह उसी और चलने लगता है...ऐसे मै समाज का भी बाला नही होता और इंसान ख़ुद की पहच्चन खोता चला जा रहा है... ऐसे मै आप सब देखते ही होंगे की कल जो संस्कार हमारे पूर्वजो ने दिए थे वोह आज न क बराबर रह गए है॥ परवर्तन अनिवार्य है पर परविर्तन का मुकोटा पहन हम सच्चाई से तो नही भाग सकते न? सारी दुनिया से ख़ुद की बुरइयो को छुपा लोगे पर क्या कभी एकांत मै ख़ुद का सामना कर पाओगे ? सिर्फ़ इसका एक ही उत्तर है नही नही और सिर्फ़ नही !

इसलिए सबसे से पहले ख़ुद को समझो ख़ुद को पहचानो की तुम कौन हो ? तुमारा मजिल क्या है ? क्या जो तुम कर रहे हो वोह सब के हित मै है ? तुमरे कर्तव्य का है ?

ऐसी ही कई सावाल है जो ख़ुद से पूछोगे तो हर एक सवाल का उत्तर अपने आप ही सामने आ जाएगा॥ जो तुम्हें तुमरे अन्तेरात्मा से मिलाएगा और तुम सही मायने मा चैन की साँस ले सकोगे...

हमारी पहच्चान ही हमारा अस्तित्व है !

लेखिखा
"दिव्या"

Saturday, October 10, 2009

बछडा - एक सची घटना !

कुछ दिनों पहले की बात है युहीं रास्ते से गुज़रते हुए मैंने अक बछडे को देखा जो अपनी माँ की गोद में बेठा हुआ था और उसकी माँ उसको प्यार से सहला रही थी ॥

जैसे जैसे मैं उनके करीब गई देखा वोह मासूम बछडा पुरी तरह खून से लतपत था और उसकी माँ उसको पुचकार रही थी॥ उसकी ये दशा देख कर ऐसा व्यतीत हो रहा था मनो कोई गाड़ी वाला उसको मार कर गया हो... उस व्यक्ति को इस मासूम पर दया भी नही आई होगी ॥

शायद आज की दुनिया में इंसान, इंसान की परवाह नही करता उस दुनिया इंसानों से बेजुबान जानवर के लिए दया की उम्मीद करना शायद ख़ुद की नासमाजी होगी।

उस मासूम बछडे का दर्द मनो मेरे मन में उस व्यक्ति क प्रति करोड़ उत्पन कर रहा था और वहीँ दूसरी और उस बछडे का दर्द और उसके माँ की पीड़ा मेरे मन को कम्जूर कर रही थी... बछडे की माँ अपने बच्चे को गोद में लिए उसकी आंखिर साँसे गिन रही थी और अपनी ममता भरी आँखों से अपने बच्चे के दर्द को महसूस कर उसके दर्द को कम करने की नाकाम कोशिश कर रही थी और मनो उसका मासूम बछडा अपनी माँ से बिछड़ने के गम को मन में दबाए अपनी माँ को सान्तवना दे रहा हो॥

ये ख्याल एक का एक मन में उत्पन होने हो रहे थे॥ समाज नही आ रहा था की क्या करूँ या क्या ना करूँ॥ फिर मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी में डायल किया और उनसे एनीमल केयर वालो का नम्बर लिया और उनको फ़ोन करके बुलाया ॥ उनको आते आते लगभग आदा घंटा हो गया था और ऐसे में उस बछडे की हालत और कराब हो रही थी॥ गाये ने अपने बच्चे को और कस कर पकड़ रखा था मनो अभी वोह रो पड़ेगी ॥ उसकी आँखों से ऐसा साफ़ व्यतीत हो रहा था ॥

लगभग आदे घंटे बाद एनीमल केयर वाले आए और उस मासूम बछडे को उठा कर ले जाने लगे और उसकी माँ उनको ले जाने से रोकने की कोशिश करने लगी इस दोहरान २-३ बार उस एनीमल केयर वाले व्यक्ति को भी हाथ मा करोचे आ गई... ॥

पर उस का माँ की पीड़ा भी कम नही थी॥ ऐसे वक्त में अक माँ का साथ जरुरी होता है पर मैं उसकी ( बछडे ) की जान बचने की कोशिश में उसको उसकी माँ से दूर कर रही थी॥ शायद अभी उसकी जान बचाना जायदा जरुरी था॥

वोह उस बछडे को उठा कर ले गए और उकसी माँ उस गाड़ी की और की ताकती रही ....

उस माँ को तनहा छोड़ मैं भी घर की और निकल पड़ी ॥ मन में अक अजीब सा एह्साह लिए की क्या फ़िर वोह माँ बछडा मिल पायेगे॥ पर शायद जब मिलेंगे तो उसकी माँ के मन में होने वाली खुशी अनमोल होगी.....

लेखिखा
"दिव्या"

Friday, October 9, 2009

जिन्दगी के उतार चडाव में कभी हार नही मानना !

जिन्दगी बहूत खूबसूरत है हो सके तो कभी मन की आँखों से देखना!

जिन्दगी में हर किसी को उतार चडाव देखने को मिलते है हर बार मन् हारता हुआ सा नज़र आता है ना चाहते हुए भी मन में उठने वाले ख्याल मन में हलचल पैदा कर देते है जो हमारे अंतर्मन को कमजोर कर देता है मनो लगता है है दुनिया में हमारा कोई अस्तित्व नही है हमसे कोई खुश नही है॥

ऐसे ख्याल मन् को अक्सर दुविदा में डाल देते है की क्या करे या क्या ना करें, एसे वक्त में अच्छा सोच पाना मुस्किल सा लगता है , जो हमरे मन को अन्द्कार से निकलने नही देते और अपने में धीरे धीरे समा लेते है ॥ ऐसे हालत में मन पे काबू पा लेना मतलब अपने मन को जीत लेना होगा॥

हम हमेशा जिन्दगी में अच्छे और बुरे दोनों काम करते है और जब भी मन में ऊपर कहे गए हालत उत्पन हों तो आप उन् खूबसूरत लम्हों को याद करे जिसके कारण आपके चेहरे पे हसी आई हो, उन् लम्हों को याद करे जब आपके कारण किसी के आंसूं को आपने एक खिलखिलाती मुस्कराहट दी हो, उन् खूबसरत लम्हों को याद करें जब पुरा दिन बिताने के बाद आपने रात में चैन की साँस ली हो , उन् लम्हों को याद करें जब किसी ने आपकी प्रसंशा की और किसी को आपकी जरुरत पड़ी हो...

यकीन करें ये सारे लम्हे आपके मन में एक नई उमंग एक नई ताज़गी भर देंगे और आपको जीने की एक नई राह देंगे और सच माने दुःख के पल क्षण में दूर हो जायेंगे और खुशिया आपके कदम फिर से चूमेगी...

एक खिल्किलाती मुस्काराहट आ जायेगी आपके लबो पे उन् सुंदर लम्हों को याद करें, और वैसे भी किसी ने कहा है ना मुस्कराहट हर गम को दूर कर देती है :)

तो अगली बार जब भी आपका मन विचलित हो आप मेरी इन् बातो पे गौर फरमाइयेगा !!

उसी खूबसूरत मुस्कारत के साथ फ़िर लौटूंगी अपनी नई पोस्ट लेके !

लेखिखा
"दिव्या"

Sunday, October 4, 2009

जिन्दगी

जिन्दगी शब्द अपने आप में एक पहेली है जिससे समझ पाना एक आदमी के बस में नही...

जिन्दगी एक अनकहा खवाब है जो ख़ुद में अनेक रंग समेटे हुए है, कुछ खुशी के रंग, कुछ गम के रंग और कुछ ऐसे एहसास जो भुलाये नही बुले जाते है॥

जिन्दगी एक समुन्दर की लहर है जो आपको छु कर जब गुज़रती है तो मनो एक ख़ूबसूरत एहसास आपके ज़हन में भर जाती है, और इन लहरों के जितने करीब जाओगे उतने ही उसमे समाते जाओगे ...

जिन्दगी एक दिया है जो अपने में एक गहरे अंधेरे को समेटे हुए है... जैसे लहरें अपने में सब कुछ समेट वैसे ही जिन्दगी की रोशनी आपको खुशिया तो देती है और इससे जितना जाने की कोशिश करोगे येया अन्देरे गलियारों में ले जायेगी जहाँ से निकल पाना मुस्किल है ॥

जिंदगी में कई बार ऐसी बातों का सामना करना पड़ता है जिसका कारण तो हमें मालूम होता है मगर जवाब नही होता॥ उन सब बातों का हमारे जीवन, हमारे अस्तित्व पर बहूत गहरा प्रभाव होता है॥

कुछ लाइन अर्ज़ कर रही हूँ :-

जिंदगी हर पल करवट बदलती है ,
कभी साथ तो कभी दूर चलती है .
बदलती हुई जिंदगी मेरी ,
मेरे जीवन की बंदगी हो गई है
हाँ अब तो आदत सी हो गई है ...



लेखिखा
"दिव्या"

Friday, October 2, 2009

Begger - भिखारी

मेरा जन्मदिन था, दोस्तों के साथ खूब मस्ती करने के बाद मैं घर को रवाना हुई और बस में बेठ गई और बस के शीशे से सर टेक कर बेठ गई !

काफ़ी थक चुकी थी इसलिए मैंने थोडी देर के लिए आँखे बंद कर ली और ऐसे ही पुरे दिन की बातें सोच रही थी ! फ़िर थोडी देर में बस चलने लगी कुछ देर बाद बस एक बस स्टाप में रुखी और मेरी आँख खुली ॥ वहां से एक भिखारी बस में चडा और उसके हाथ में अक सितार था , फ़िर उसकी तरफ़ देखा मैंने और फ़िर शीशे पर टेक लगा लिया मैंने ... बस में रेडियो बज रहा था और थोडी देर बाद बस वाले ने रेडियो बंद कर दिया और एक बहूत प्यारी सी मधुर सी धुन बंजने लगी मेरी आंखे फ़िर खुली और देखा वोह भिखारी वोह धुन बजा रहा था

वोह इतना मधुर धुन बजा रहा था की बस में बेठा हर व्यक्ति उसकी धुन का आनंद ले रहा था । उसके सितार से निकली हर धुन मेरे पुरे दिन की थकन को दूर कर रही थी। और मनो ऐसा लगा की शायद वोह अपनी धुन में कह रहा हो " देखो मेरी हालत क्या है मेरी दुनिया क्या है और फ़िर भी मुझे किसी बात का दुख नही मेरे पास कला है जो मेरे जीने का जरिए है फ़िर भी लोग मुझे भखारी कहते है ''

वोह भखारी किसी की तरह नही देख रहा था वोह बस अपनी धुन बजा रहा था और मनो वोह अपनी ही धुन मा खोया हो... उसकी इस अनमोल कला को देख कर लग रहा था की उसके सामने मैं कुछ भी नही...

बस में बेठा हर व्यक्ति बिना उसके मांगे ही उसको अपनी मर्ज़ी से रुपये दे रहा था । येया भी नही की एक या दो रुपए बल्कि शायद ही किसी ने उसको पाँच रुपए से कम रुपये दिए हो॥ मनो उसने मेरे बर्थडे गिफ्ट दिया हो थो मैंने भी ख़ुद से ग्यारा रुपए निकाल कर उसको दिए !

फ़िर कुछ देर बाद लोग उससे अपने मन पसंद की धुन बजा रहे थे और वोह उस्सी बेहतरीन कला से सब की फरमाइश कर रहा हो॥ वोह थो सच में मेरी नज़र में अक रॉक स्टार था !

फ़िर मेरा बस स्टाप आया और मैं बस से उतर कर घर को जाने लगी , पर उस व्यक्ति की धुन अभी तक मेरे कानो में गूंज रही थी !

अब लग रहा था की क्यूँ इतनी कला से निपूर्ण होने के बाद भी लोग उसको भिकारी क्यूँ खेहते है क्या कोई नही जो उसको एक मुकाम दे सकता !

कुछ लाइन अर्ज़ कर रही हूँ इस घटना पर ...

जिन्दगी वक्त मांगती है ,
तरक्की को एक नई राह देने क लिए ,
इंसान उसी राह पर लगा देता है लगाम,
दुसरे को रुला, अपनी खुशी पाने के लिए !!

लेखिखा
"दिव्या "