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Friday, December 11, 2009

सीखना और सीखाना - जीवन की दो क्रिया

दुनियां बहूत बड़ी है और इस दुनियां में बहूत सारे लोग है जो अलग अलग काम करते है पर जानते है सबके ही मकसद है ? जी हाँ सही पढ़ा आपने ही मकसद दो ही लक्ष्य और वोह है – “सीखना और सीखाना”

सीखना और सीखाना ये दोनों ही शब्द एक ही शब्द से सुरु होते है वोह है “सीख”। सीख से अभिप्राये है अनुभव ।


अनुभव का प्रोयोग मैंने यहाँ इस कारण वर्ष किया है क्युंकी किसी भी प्रकार के ज्ञान का अनुभव कोई भी जनम जात नही पता है … ये भी एक प्रक्रियां है जिसमे मनुष्य की जिज्ञासा उसको प्रेरित करती है अनुभव प्राप्त करने के लिए…

सीखना हर व्यक्ति चाहता है और जो सीखने की प्रक्रिया में थोड़े आगे बढ जाते है वोह सीखना शुरू करते है…

आज हम सब किसी भी कार्य से क्यूँ न जुड़े हो हम ये दोनों क्रिया करते है.. सीखते है और सीखते भी है…

उदाहरण के लिए :-
१)जैसे हमरे माता पिता ने अपने माता पिता से सीखा और फ़िर हमें सीखने लगे ,आगे हम अपने आने वाली पीढ़ियों को सीखाएँगे ...


२) जैसे किसी कंपनी का मालिक पहले ख़ुद सीखता है फ़िर अपने करमचारियों को सीखता है …

परन्तु सीखने और सीखने की प्रक्रिया में इंसान अपने आप पर गुरुर करने लगता है वोह सीखाने तो लग जाता है पर आगे सीखना नही चाहता ऐसी में इंसान अपने निम्न स्तर में पहुँच जाता है जहाँ से उसने सीखना शुरु किया था …

हम सबी जानते है कोई भी कभी भी सम्पूर्ण नही बन सकता है… जैसे जीवन की पहली सीढ़ी हो या आखिरी इंसान सम्पूर्ण नही होता वोह शुरु से अंत तक इन दो (सीखने और सीखाने ) की प्रक्रिया में ही रहता है…

इसलिए हमें अपने अनुभव पर गमड नही करना चाहिए , जहाँ एक और हम सीखते है वही दूसरी और हमें ख़ुद भी सीकने की लालसा को अपने मन में कायम रखनी चाहिए तभी हम जीवन के सफर में कामयाब हो सकेंगे…

जब कभी आपको कोई कुछ सीखने की कोशिश करेगा तो जानते है ना आपको क्या करना है?
जी हाँ सीखना और सीखाना है परन्तु ध्यान रहे अच्छी सीख जीवन के अन्धकार को मिटा कर प्रकाश लाती है वही बुरी सीख प्रकाश को भी अंधेरे में परिवर्तित कर देती है…




लेखिखा
दिव्या