याद है वोह बचपन के दिन जब नाना जी हमें घोडा बन कर अपनी पीट पे गुमाते थे , हमे हसते थे , सैर पे ले जातें थे ! कभी सच्ची तो , कभी बनावटी कहानिया सुनाते थे ! हमारे साथ वोह भी बच्चे बन कर नानी को सताते थे !
वक़्त कितनी रफ़्तार से आगे बढ रहा है की जैसे वोह सारी शेतानियाँ मस्ती कहीं खो सी गई है, और ऐसे ही नाना , नानी जी के चेहरे से वोह हमारे बचपन की ख़ुशी कही खो सी गई है।.
जैसे जैसे हमारे बचपन कहीं खो सा गया है वैसे ही उनका वोह बचपन कहीं खो सा गया है।
और बुदापे की परेशानियाँ बच्चो का भविष्य, उनकी ख़ुशी और शादी जैसे मानसिक तनाव
से भर गई है, कुछ चीज़ेऐसी है जो शायद वोह किसी के साथ बाटना नहीं चाहते और खुदसे
ही बात करउसका हल सुल्जाने लगे है
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से भर गई है, कुछ चीज़ेऐसी है जो शायद वोह किसी के साथ बाटना नहीं चाहते और खुदसे
ही बात करउसका हल सुल्जाने लगे है
अप्रैल की बात है जब मैं अपने परिवार से साथ दक्षिण भारत के गुमने गई थी! नाना जी भी साथ आये थे ! जिस दिन हम दिल्ली से रवाना हो रहे थे उससे अक दिन पहले ही मेरे चचेरे भाई की किसी के साथ लड़ाई हो गई जिसकी वजह से उसके पीट पे 18 टांके लगे थे. बस वोह बात उनने परेशान किये जा रही थी। दिन में तो सब ठाक था पर जैसे जैसे रात हो
रही थी वैसे वैसे सब तक चुके थे और सफ़र लम्बा ता थो सब सोने की तयारी करने लगे ट्रेन में !
तब नाना जी सोने की बजाये खिड़की पे बीते अपने आप से बातें करने लगे तब मम्मी की नज़र नानाजी पर पड़ी और वोह उनने देख कर रोने लगी।जैसे ही मैंने मम्मी को देखा थो वोह नाना जी तरफ इशारा करने लगी थो मैंने देखा नाना जी अपने ही आप में बद्बने लगे , हाथो से इशारा कर जैसे कह रहे हो की " कितनी बार कहा ठाट उस लड़के को की ऐसे लडको से दूर रहे , अब ऐसी हालत हो गई है की उठ भी नहीं पा रहा है अब पता नहीं क्या होगा "!
उनको ऐसे बातें करते देख, मम्मी को उनके लिए परेशां होता देख मेरी भी ऑंखें नम हो उठी , लगा की हमारे माँ बाप , नाना नानी , दादा दादी कितने परेशां होते होंगे हमारी उलटी सीडी हरकतों से।
पता नहीं कब तक येया लोग हमारे साथ है और जब सब परेशानियों से मुक्त होकर सुकून से
जीना का वक़्त आया तो वोह खुश नहीं है, दुखी है हमरे लिए , हमरे भविष्य को लेके !!
उन्होंने हमें इतनी खुशिया दी हमारे ख्याल रखा , और हम उने क्या दे रहे है ? आप भी सोचिये जरा आप लोग उनको उनके बराबर थो नहीं पर क्या कोई ख़ुशी दे रहे है ? नहीं थो देने शुरू कीजिये पता नहीं ये पल , ये वक़्त , ये अपनापन कब आपके हाथो से निकल जाए और आप अफ़सोस करते रह जाए !!!
लेखिखा
"दिव्या"
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