ज़िन्दगी कितनी करवट बदलती जाती है
हर मोड़ पे एक नई राह लिखती जाती है
सोचते है के अब संभलेगी ये ज़िन्दगी
पर ये तो हर बार भिखरती जाती है !!!!
कभी कभी क्यूँ ऐसा लगता है की ज़िन्दगी ढेर सारी खुशियाँ दामन में भर देगी फिर पलक जपकते ही वोह सारी खुशिया गम में बदल जाती है !
जब कभी मन गबराता है तो ऐसा लगता है की शायद भगवान् ने सारे गम हमारे ही हिस्से भर दिए है... उस वक़्त न दिल काम करता है न दीमाग... सब अपनी ही दिशा में भाग रहे होता है... सही क्या है गलत क्या है कुछ समाज नहीं आता .. लगता है तेज़ तूफ़ान ने जैसे चलती हुई ज़िन्दगी को अपने आगोश में भर के उसकी रफ़्तार पे रोक लगा दी है...
लोगो पर से भरोसा उठ जाता है... एक इंसान एक साया सा नज़र आता है जो अँधेरा होते ही तुमारा साथ छोड़ देता है... अकेला बेबस सा छोड़ देता है जहाँ पर कोई अपना पराया नहीं होता ... न ही वोह साया उस अंधियारे में तुमारी तरफ आने की कोशिश करता है...
क्यूँ ? इस क्यूँ के सिवा कोई और प्रश्न ज़ेहन में नहीं आता , लगता जैसे तुमरे मन मा आस जगा कर तुमसे सब कुछ चीन लिया हो.. जैसे भूक से भिलकते बच्चे को खाना दिखा कर छीन लेना...
पर जानते है ये सारे धुक एक पल में गायब हो जाते है जब हमसे भी ज्यादा धुकी होता है... इसलिए... जब भी दुख हो जब भी तकलीफ हो.. एक बार अपनी आँखे बंद करके किसी ऐसे व्यक्ति या ऐसे इंसान के बारे मा सोचना जो तुमसे भी जयादा तकलीफ में हो.. तुमरे दुःख उसके सामने छोटा लगने लगेगा और तुमको हिम्मत मिलेगी अपनी तकलीफों से लड़कर उभरने के लिए...
अपना ख्याल रखना...!
दिव्या !
sundar likha seekh achchi mili...
ReplyDeletesach me bahut sundar line hain bahut jayda
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeletegood thinking and writting.go ahead....
ReplyDeleteThanks G.N Shaw...
ReplyDelete